Sunday, November 14, 2010

आड़ी-तिरछी लकीरें

वक़्त                             
हाथों की लकीरों से
मिलकर
जीस्त के पन्नो पर
जो आड़ी-तिरछी लकीरें
खिंच देता है
वो
मिटते नहीं कभी
हाँ धूमिल
जरूर हो जाते हैं
और
मन की जमीं पे
जब-जब
बारिश होती है
उभर आते हैं 
बिलकुल वैसे
जैसे
अभी खिचे गए हों ..

Thursday, October 28, 2010

एक अधुरी कहानी

रात  अनगिनत  आँखों  से  देखती  रही                      
तेरे  गम  का  कारवां
अश्क  ओस  बन  टपकते  रहे  दरख्तों  से
और  दिल  की  दीवारों  पे
बनने  लगे  कुछ  भीगे  से  नक़्शे
यादों  की  हल्की   सी  धुंध
धीरे  धीरे  लिपटने  लगी
हर  ज़र्रे  से
और  उभरने  लगे  अल्फाज़
एक  पहचानी  सी  कहानी  के
अश्कों  से  सराबोर
अधूरे  से  इस  ख़त  के  टुकड़े
शायद  तुम्हे  कहीं राहों में  मिलें
हवा  का  इक  तेज़ झोंका 
धोखे  से  इसे
उड़ा  ले  गया  था
सूखे  पेड़ों  की  टहनियों  में  फंस
तार  तार  हो  चुका  है  दामन  उसका
अनकहे  लफ्ज़, कुछ  मिसरे
कुछ गीतों के  बोल
जो  गाये थे हमने कभी
कुछ  चाहतें  और
बहुत  कुछ
जो  तुमसे  जुड़ा  था
बिखर  सा   गया  है
रह  गयी  है  तो  बस
फिजाओं  में  एक
भीनी  सी  महक
गर्मी की पहली बारिश में नहाई
सौंधी  मिटटी  सी

Tuesday, October 26, 2010

कुछ ख्वाबों की राख

कुछ ख्वाबों की राख                         
आज एक पुराने डब्बे मे मिली
नरम गुलाबी  धागे से बंधे   
कुछ पन्ने
और उन पर नीली स्याही से लिखे हुए
कुछ नगमे
आँख से टपके हुए अश्को के सूखे धब्बे
और मुरझाये हुए फूलो के कुछ बिखरे कतरे 
सफ़ेद कागज़ पर पिरोये कुछ सुनहरे मोती
कुछ खत जो उसने मुझे लिखे थे कभी 
एक कोने मे चाँदी की एक तन्हा पायल  
और एक कढ़े  हुए रुमाल मे दो सुरख लबो के निशान
इन कत्ल हुए ख्वाबों मे ज़िन्दा है कुछ अब भी
इक भीनी सी खुशबू
कुछ तेज़ धड़कने  
और बन्द आँखो के पीछे
उसके प्यार की नमी  

Wednesday, October 13, 2010

खुदखुशी

कल खिड़की से देखा..       
सूरज ने नदी मे डूब कर 
खुदखुशी कर ली 
फिर देखा उसी नदी से.. 
एक सफ़ेद साया उभर आया  
शायद सूरज का ही भूत था 
और लोग कहने लगे कि चाँद निकल आया है     

Tuesday, October 12, 2010

"काश"


याद                
बस
एक लम्हा
गुज़ारा था तेरे साथ,
एक
भरी पूरी उम्र
कट गयी
उस लम्हे की
यादों के सहारे !
काश !
एक उम्र
तेरे साथ
गुजरने पाती..................!